माउंटेन गर्ल शीतल
पिथौरागढ़ की 24 वर्षीय शीतल राज ने 2018 में माउंट कंचनजंगा को फतह किया। शीतल राज अब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली राज्य की सबसे कम उम्र की महिला बन गई हैं। राज ने यह उपलब्धि 16 मई को हासिल की थी। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के एक छोटे से गांव सल्लाड़ा में जन्मी शीतल राज की।जो बन चुकी हैं ‘माउंटेन गर्ल शीतल’। उनके जन्म से ही उनकी दादी उनसे नाखुश थीं और वे हर वक़्त शीतल की ताने मारती थीं। शीतल अक्सर दादी के तानों से बचने के लिए अपनी माँ के साथ जंगल चली जाया करती थीं। जंगल में उनकी माँ अपने काम करने लग जाती थीं और शीतल पहाड़ों पर चढ़ती रहती थीं। इसी तरह वे बचपन से ही पहाड़ चढ़ने की शौक़ीन हो गयीं। लेकिन वह माउंटेनियर बन सकती हैं यह बात उनको तब तक समझ नहीं आई जब तक उन्होंने कॉलेज में NCC ज्वाइन नहीं की थी।
इससे पहले भी कई चोटियाँ की हैं फतह
वर्ष 2015 में उन्होंने दार्जिलिंग के हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान और जम्मू के पर्वतारोहण संस्थान से माउंटेनियरिंग का एडवांस कोर्स पूरा किया। इसी साल 2023 में उन्होंने 7,120 मीटर ऊँची त्रिशूल चोटी को फतह किया। इसके बाद उन्होंने 7075 मीटर ऊँची सतोपंथ पर तिरंगा फहराया, लेकिन उन्होंने अपना असली मुकाम तब हासिल किया जब वे सबसे ऊँची चोटी माउंट कंचनजंगा की चोटी पर तिरंगा फहराकर भारत की पहली और दुनिया की तीसरी महिला बनी। तब उनकी उम्र सिर्फ 22 साल थी और इस सफलता के बाद वो ‘Mountain girl शीतल ’ बन गयी।
माता पिता ने किया समर्थन
2016 में, युवा पर्वतारोही ने अपने माता-पिता से पर्वतारोहण के अपने जुनून का पालन करने की अनुमति देने के लिए तीन साल का समय मांगा था क्योंकि वे शुरू में उनके माउंटेनियरिंग का समर्थन नहीं कर रहे थे। उन्होंने 2018 में माउंट कंचनजंगा को फतह किया। उनके गौरवान्वित पिता उमाशंकर राज ने अपनी बेटी की उपलब्धि की प्रशंसा करते हुए कहा, “हमारे जैसे छोटे से गांव में, जब शीतल का जन्म हुआ, तो कोई जश्न नहीं मनाया गया क्योंकि वह एक लड़की थी। लेकिन उसकी मौसी हमेशा मुझसे कहती थी कि यह लड़की एक दिन हम सभी को गौरवान्वित करेगी, आज वह दिन है।
फलीभूत हुआ प्रशिक्षण
शीतल ने कहा आखिरकार मैं इतने सालों से जिस प्रशिक्षण से गुजर रही था, वह फलीभूत हो गया है। मैंने वह सब हासिल कर लिया है जिसका मैंने बचपन से सपना देखा था। तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें ‘तेनजिंग नोर्गे अवार्ड’ से सम्मानित किया। साथ ही उन्हें उत्तराखंड में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान का ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त कर दिया गया है। शीतल ‘Climbing beyond the summits’ की को फाउंडर भी हैं। उनका कहना है की लड़कियां लड़कों से ज्यादा ताकतवर होती हैं और जब उन्हें इस बात का एहसास होता है तब वे इतिहास रच देती हैं।